नैतिकता क्या है ? यह
एक यक्ष प्रश्न है । प्रत्येक व्यक्ति इस शब्द का अपने
अनुसार अर्थ ग्रहण और सम्प्रेषण करता है परन्तु यह बेहद विचारणीय है कि
वर्तमान में जब सभ्यताएं अपने आपको विकसित, विकासशील और अविकसित श्रेणी में
वर्गीकृत कर रही हैं । जब मानव धरती के जीवन में मंगल को छोड़ मंगल ग्रह पर जीवन की तलाश कर रहा है। जब मानव
में हथियारों को लेकर अजीब सी दौड़ छिड़ी हुई है। जब सरकारें नैतिकता लाने के
लिए सिलेबस तक में नैतिकता या नैतिक मूल्यों
की किताबों को लागू कर रही हैं । ऐसे में "नैतिकता" जैसे शब्दों का क्या
औचित्य है। हर कोई नैतिकता का राग अलाप रहा है परन्तु जैसे ही मौका मिलता
है वैसे ही वह उसी नैतिकता को त्याग आधुनिकता का दामन ओढ़ दकियानूसी दुनिया
को गालियां देना शुरू कर देता है। वहीं यदि हम थोड़ा इतिहास में जाएँ तो हम पाएंगे कि पहले न कोई नैतिक
मूल्यों का सिलेबस था और न ही नैतिक
मूल्यों को सीखने सिखाने की कोई संस्था या स्कूल थे, फिर
भी प्रत्येक रिश्ते की एक सीमा थी। एक दूसरे के प्रति मान सम्मान
था । मानव मात्र मानव ही नहीं बल्कि प्राणी मात्र के दुःख-सुख का साथी था।
मेरे अपने विचार से नैतिकता की सबसे बड़ी पाठशाला है परिवार और समाज। क्योंकि पीढ़ी दर पीढ़ी जो विचार और गुण चलते हैं वही नैतिकता के सर्वोत्तम वाहक है किंतु जैसे जैसे समाज मे भौतिकवाद का बोलबाला बढ़ा है वैसे वैसे परिवार नाम की संस्था एकांकी हुई है जिसमें से दादा-दादी, माँ- बाप, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, बहन-भाई, बुआ-फूफा आदि रिश्ते ही नहीं बल्कि इनके नाम भी विलोप हो गए। वास्तव में एक समय में दुनिया में औसत तीन पीढ़ियाँ एक साथ अस्तित्व में रहती हैं, दादा-दादी जिनके पास समय है काम नहीं होता। माँ बाप जिनके पास काम है समय नहीं । बच्चे जिनके पास समय है। इस प्रकार जिन दो पीढ़ियों के पास समय है यदि वो दोनों एक साथ रहें तो बुजुर्ग पीढ़ी के अनुभव का लाभ नव पीढ़ी को अवश्य ही मिलेगा ( इसमें भी कोई दो राय नहीं कि नैतिकता का जो ज्ञान यानी कि जिंदगी जीने का जो आवश्यक तत्व है बुजुर्ग पीढ़ी के पास अर्जित है)। और यही अनुभव तत्व वास्तव में नैतिकता है। अतः यह आवश्यक है कि पीढ़ी दर पीढ़ी जो दूरी बढ़ती जा रही है उसे घटाने की आवश्यकता है। यदि हम यह सम्भव कर सके तो समाज में वृद्धाश्रम बंद हो जाएंगे और नैतिकता के लिये किसी भी पाठ्यक्रम या संस्था की आवश्यकता नहीं होगी । समाज में समरूपता, तालमेल और एक दूसरे को समझने एवम आदर करना ही नैतिकता है।
मेरे अपने विचार से नैतिकता की सबसे बड़ी पाठशाला है परिवार और समाज। क्योंकि पीढ़ी दर पीढ़ी जो विचार और गुण चलते हैं वही नैतिकता के सर्वोत्तम वाहक है किंतु जैसे जैसे समाज मे भौतिकवाद का बोलबाला बढ़ा है वैसे वैसे परिवार नाम की संस्था एकांकी हुई है जिसमें से दादा-दादी, माँ- बाप, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, बहन-भाई, बुआ-फूफा आदि रिश्ते ही नहीं बल्कि इनके नाम भी विलोप हो गए। वास्तव में एक समय में दुनिया में औसत तीन पीढ़ियाँ एक साथ अस्तित्व में रहती हैं, दादा-दादी जिनके पास समय है काम नहीं होता। माँ बाप जिनके पास काम है समय नहीं । बच्चे जिनके पास समय है। इस प्रकार जिन दो पीढ़ियों के पास समय है यदि वो दोनों एक साथ रहें तो बुजुर्ग पीढ़ी के अनुभव का लाभ नव पीढ़ी को अवश्य ही मिलेगा ( इसमें भी कोई दो राय नहीं कि नैतिकता का जो ज्ञान यानी कि जिंदगी जीने का जो आवश्यक तत्व है बुजुर्ग पीढ़ी के पास अर्जित है)। और यही अनुभव तत्व वास्तव में नैतिकता है। अतः यह आवश्यक है कि पीढ़ी दर पीढ़ी जो दूरी बढ़ती जा रही है उसे घटाने की आवश्यकता है। यदि हम यह सम्भव कर सके तो समाज में वृद्धाश्रम बंद हो जाएंगे और नैतिकता के लिये किसी भी पाठ्यक्रम या संस्था की आवश्यकता नहीं होगी । समाज में समरूपता, तालमेल और एक दूसरे को समझने एवम आदर करना ही नैतिकता है।
अमी सिंह
प्रवक्ता राजनीति शास्त्र
विद्यालय राजोखेडी अम्बाला हरियाणा
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