बड़ा ही अटपटा और रोमांचक मुद्दा है कि आख़िरकार नकल ही आजकल क्यों फैशन में है |
क्यों छात्र नहीं ले रहे पढाई में रूचि ?
>>देखा जाए तो नक़ल के भरोसे रहने वाले युवा विद्यार्थी क्या आपको लगता है इसमें क्या मेहनत नहीं करते ?
>> जवाब है हाँ !
इसमें भी काफी मशक्कत और रिस्क उठाना पड़ता है |
>>फिर एक प्रश्न और उठता है कि आखिर इसकी नौबत क्यों आई ? क्या वे इतनी मेहनत लग्न से पाठ्यक्रम को रेडी करने में लगाते तो इस लायक तो हो ही जाते कि परीक्षा में पास हो सकें |
>>और इसमें कई बार अध्यापक भी साथ क्यों देते हैं (माफ करना इसमें सरकारी एवं निजी दोनों अध्यापकों की बात हो रही है |)
>> क्यों वर्ष दर वर्ष घट रहा है शिक्षक का और छात्र का संबंध स्तर |
>>जानिए ऐसा क्यों है ??
>> इसके लिए कई कारक उत्तरदायी हैं |
1. बदलता आधुनिक रहन-सहन
2. टी.वी. का कहर
3. मोबाइल का कहर
4. पढ़ाने की पुरानी तकनीक
5. अध्यापक का सृजनात्मक न होना (उसका कारण उसका घरेलू परेशानियों से मानसिक दबाव हो सकता है |
लेकिन इसमें बच्चे का क्या कसूर है !)
6. सरकार का कागज़ी कार्य एवं शिक्षण से दूर ले जाने वाली अटपटी गतिविधियाँ |
7. माँ-बाप का अत्यधिक हस्तक्षेप भी आजकल उन्हें अपने बच्चों से दूर कर रहा है |
1. बदलता आधुनिक रहन-सहन :- आजकल बदलते रहन सहन के अनुसार आज की तारीख में कोई घर पर मेहमान भी आ जाता है तो उनके पैर छूने में शर्म महसूस होती है और यदि छू भी लिए जाएँ तो केवल घुटनों तक ही हाथ जाता है और शर्म के मारे मेहमान को ही कहना पड़ता है कि बस बस रहने दो | उसका कारण यही है कि मेहमानों को भी लगता है कि जब बच्चे ही झुकना नहीं चाहते और घुटनों तक बैठ कर औपचारिकता करते हैं तो वे इसीलिए इसे टाल ही देते हैं और इसी तरह लड़के आजकल कटी-फटी पेंट और झोंपड़ी की तरह जाल बुनकर बाल बनवाते हैं जिससे वे लड़की की तरह लगें और बे बता सकें कि वे लड़कियों से किसी मामले में कम नहीं हैं और इसी प्रकार लड़कियां दुपट्टा सूट छोड़कर पेंट टॉप में और बाल इसीलिए कटवा रही हैं कि वे दिखा सकें कि वे लड़कों से किसी भी मामले में कम नहीं हैं और पहले खुली डुली पेंट का ज़माना था और प्जामी सूट स्त्रियाँ डाला करती थी अब इसे भी उल्टा देखिये लड़के पजामी जिसे हम स्किन टाइट कहा करते थे उसे नैरो पेंट की संज्ञा देकर पहनते हैं और लड़कियां व् स्त्रियाँ उनकी पेंट जैसे सिलवाती हैं और उसे पलाज़ो का रूप दे दिया गया है | आप कहेंगे पहनावे का नक़ल से क्या संबंध है यही पहनावा तो है जो हमारे दिन भर के समय में से हमारे 2 घंटे किस्तों में ये सोचने में छीन लेता है कि मै अच्छा या अच्छी तो लग रहा हूँ या लग रही हूँ | जब ध्यान स्टडी में केन्द्रित नहीं होगा तो कहाँ से सफलता होगी और कहाँ से ज्ञान की क्वालिटी आएगी यह छात्रो पर ही नहीं अपितु अध्यापक या अध्यापिकाओं पर भी लागू है |
2. टी. वी. का कहर :- जहाँ टी. वी. मनोरंजन के साधन से कभी शुरू हुआ था। वहीं आजकल यह बच्चों के मोह और आलस का कारण बन गया है । गीतों का कहर और उनका फैशन इस कदर नई पीढ़ी पर हावी हो रहा है कि निम्न वर्ग के परिवार के मुखिया अपने बच्चों की फैशन की जरूरतों को पूरा करने में बेबस नजर आते हैं । लेकिन युवा वर्ग तो टी. वी. की जिन्दगी को ही सच समझ बैठा है । युवा वर्ग को मार्गदर्शित करने के लिए उनसे मैत्रीपूर्ण व्यवहार आवश्यक है और उन्हें नैतिकता के बारे में सिखाने के लिए बुजुर्गों का सानिध्य भी आवश्यक है और उनके प्रति पॉजिटिव रवैया भी अति आवश्यक है।
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